इतना कि _
जितना उससे नहीं हो सकता था
हूलते हुए दर्द को पी जाना सहज न था
तब तो वह जानती ही न थी
दर्द कहते किसे हैं
वह तो _
खेलते हुए ठोकर लग जाने को
दर्द का का नाम देकर
माँ के आँचल के खूंटे से बाँध आती थी
तब तो पता ही न था
कि - पहली बार किए गए प्यार में भी
खून कि धार का दर्द लिपटा होता है
और
मिलन की सारी उमंग
सहसा भय की सिसकियों में बदल जाया करती है
इसी को तो कौमार्य व्रत भंग कहते हैं
और तब सहसा
भूली हुई कुंती याद आती है
यह कैसा लोक लाज है
जिसे लाज नहीं आती ।
_ मधुलिका
Thursday, January 22, 2009
बस उतना ही नही ...
माँ !
मैं जब भी देखती हूँ
ख़ुद को सीढियाँ चढ़ते
और दूसरी तरफ़
तुम्हें ढलान से उतरते हुए
तो _मेरी तड़प का अवसान
एक कर्तव्य बोध मेंहोता है ।
माँ !
मैं जरा उच्च स्वर से पाठ करुँगी
ताकि तुम भी सुनो
इस बेसुरे गले से सिर्फ़ गीत ही नहीं निकलते
आतताइयों के खिलाफ
चिंगारी भी निकलती है ।
माँ !
एक गुजारिश है तुमसे
अपने गुजारे गए जीवन का एक अंश
मुझे भी जानने दो
थोडी सी भभक मुझे भी दो
कि _ मैं जला कर राख कर दूँ उन्हें
जिससे आने वाली माँ ओं को
न गुजरना पड़े
तुम्हारे गुजारे गए जीवन से _ _ _
मैं जब भी देखती हूँ
ख़ुद को सीढियाँ चढ़ते
और दूसरी तरफ़
तुम्हें ढलान से उतरते हुए
तो _मेरी तड़प का अवसान
एक कर्तव्य बोध मेंहोता है ।
माँ !
मैं जरा उच्च स्वर से पाठ करुँगी
ताकि तुम भी सुनो
इस बेसुरे गले से सिर्फ़ गीत ही नहीं निकलते
आतताइयों के खिलाफ
चिंगारी भी निकलती है ।
माँ !
एक गुजारिश है तुमसे
अपने गुजारे गए जीवन का एक अंश
मुझे भी जानने दो
थोडी सी भभक मुझे भी दो
कि _ मैं जला कर राख कर दूँ उन्हें
जिससे आने वाली माँ ओं को
न गुजरना पड़े
तुम्हारे गुजारे गए जीवन से _ _ _
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