Thursday, October 15, 2009

दीवार ...

एक दिन
दीवारों से कहा था मैंने -
वे कभी नहीं आ सकतीं
हमारे मीठे रिश्ते के बीच ।
तब धीरे से कोई हँस पड़ा था ...
और डर गई थी मैं उस मद्धिम हँसी से
कि भूला नहीं मुझे
उसकी हँसी पे
एक मीठी कविता लिख दिया तुमने
और वो उसकी हँसी
दीवार बन उभर आई
हमारे बीच
एक दिन ....


- मधुलिका .

3 comments:

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar said...

मधुलिका जी ,
बहुत ही सुन्दर और सम्वेदनात्मक कविता है आपकी--पर इतना लम्बा अन्तराल--कविताओं के अन्तराल को थोड़ा कम करें तो बेहतर है।
दीपावली की शुभकामनायें।
हेमन्त कुमार

D.P. Mishra said...

मधुलिका जी ,
बहुत ही सुन्दर

योगेन्द्र मौदगिल said...

sunder kavita....